Gyan Yog – ज्ञान योग की साधना में चतुर्थ चतुर्थष्ठाम
ज्ञान योग की साधना में चतुर्थ चतुर्थष्ठाम
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Gyan Yog |
ज्ञान योग में ज्ञान का अर्थ है जानना, इस योग के माध्यम से जानकर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। सांख्य योग में ज्ञान योग को प्रकृति व पुरुष के बीच भेद करना बताया गया है।
ज्ञान की अवस्था:- चार साधन
१. विवेक
२. वैराग्य
३. षटसम्पत्ती
४. मुमुक्षुप्त
१. विवेक:-
विवेक का अर्थ है ज्ञान व चेतना। इस स्थिति में व्यक्ति सत्य और असत्य चल- अचल आदि में भेद करने लग जाता है । गुण -दोष का अंतर पाना ही विवेक कहलाता है।
२. वैराग्य:-
इस स्थिति में किसी भी प्रकार की इच्छाएं लालसाए , कार्य करने के बाद फल की इच्छा नहीं रह जाती। ज्ञान योग के साधक को यह ज्ञान होता है / होना आवश्यक है।
३. षटसम्पत्ती:-
ज्ञान योग के साधक द्वारा निम्न 6 सिद्धांतों का पालन किया जाता है जिन्हें षटसम्पत्ती कहते हैं-
1. सम
2. दम
3. उपरति
4. तितीक्षा
5. श्रद्धा
6. समाधान
1. सम:- सम का अर्थ है शमन करना। उद्धेगो का श, इस स्थिति में मन पूर्ण रूप से शांत होता है तथा इंद्रियों के कामनाओं से दूर होता है।
2. दम:- दम का अर्थ है दमन करना। इस स्थिति में कर्मेंद्रियां तथा ज्ञानेंद्रियां को बाहरी विषयों से दूर किया जाता है।
3. उपरति:- भोगो से उपरति भी निवृत्ति ही है , इस स्थिति में मन , बुद्धि स्वयं के वश में होती है तथा सांसारिक वस्तुओं का स्वयं के ऊपर कोई असर नहीं होता है।
4. तितीक्षा:- इस स्थिति में मन में धैर्य होता है तथा किसी भी तपस्या को करने के लिए मन तैयार रहता है।
5. श्रद्धा:- पवित्र ग्रंथों और शास्त्र वाक्य एवं गुरु वाक्य पर विश्वास , भरोसा एवं निष्ठा करना ही श्रद्धा कहलाता है।
6. समाधान:- इस आस्था में मन में पूरा ध्यान ब्रह्म की ओर होता है।
४. मुमुक्षुप्त:-
हृदय में परमात्मा की अनुभूति रखते हुए मोक्ष को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा मुमुक्षुप्त कहलाती है । इसमें निरंतर ब्रह्म की प्राप्ति तथा संसार के समस्त बंधनों से मुक्त होने की इच्छाएं होती हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्प होना मुमुक्षुप्त कहलाता है।
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ज्ञान योग के अभ्यास के अवधारणाएं
नवधा भक्ति के भेद (साधना चतुष्ठा)
श्रवण :- गुरु की वाणी तथा ज्ञान को सुनना।
मनन :- निरंतर मन ही मन ज्ञान का अभ्यास करना।
निधिभ्यास:- सत्य को स्वीकार करना तथा सत्य को जानना।
समाधि:- शून्यता की ओर जाना।
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