किला परीक्षितगढ़ का इतिहास || Kila Parikshit Garh || Raja Parikshit
रामायण और महाभारत कालीन ऐतिहासिक नगर परीक्षितगढ़ (Kila Parikshit Garh) , मेरठ ( उ.प्र . ) से 25 किमी . दूरी पर पूर्व दिशा में हैं । महाभारत युद्ध के उपरान्त अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु पुत्र राजा परीक्षित ने इस नगर को अपनी राजधानी इसलिए बनाया क्योंकि हस्तिनापुर पर द्रोपदी का श्राप और इन्द्रप्रस्थ युद्ध का कारण दोंनों का अशुभ माना और ऋषि मुनियों की तपस्थली को बहुत पवित्र स्थान माना ।
द्ववापर युग के बाद कलयुग का आरम्भ भी यही से हुआ है श्रीमद् भगवत कथा भी यहीं से आरम्भ होती है । यहाँ पर रामायण कालीन ऐतिहासिक आश्रमों के अवशेष तथा महाभारत कालीन ऐतिहासिक धरोहर आज भी अपनी कथा दोहराती है जो खुद एक प्रमाण है और अद्भुद है ।
यहाँ की आस्था लोगों को अपनी ओर आकृषित करती है । एक बार जो यहाँ आता है बस यही का हो जाता है । ऐसा आकर्षण है यहाँ पर ।
हमारी परीक्षितगढ़ की प्राचीन एवं दर्शनीय धरोहर
Ancient and scenic heritage of Parikshit Garh
1. गोपरेवर धाम Goprevar Dham –
महाभारत के भयंकर युद्ध को टालने के लिये संधि प्रस्ताव लेकर भगवान श्री कृष्ण दूत बनकर चले तो रात्री विश्राम उन्होंने इसी आश्रम में किया था और भगवान शिव की आराधना कर इस शिवलिंग को गोपेश्वर नाम दिया था ।

यहीं पर युधिष्ठर ने श्यामा तालाब का निर्माण भी कराया जो आज भी स्यानी तालाब के नाम से जाना जाता है । यहाँ पर – अनेक सन्तों – ऋषियों ने तपस्या की । जिनमें महर्षि कात्यायन , स्वामी दयानन्द , नित्यानन्द स्वामी , स्वामी करूणा सागर , स्वामी नारायण गिरी जी आदि ने इस स्थान पर तपस्या कर इसे और भी पवित्र बनाया । आज भी अनुयायी यहाँ आते रहते है ।
गुफा गोपेश्वर मन्दिर में मुख्य आयोजन लगभग 3 वर्ष पूर्व राधा कृष्णा जी की मूर्ति की स्थापना हुई थी । महाशिव रात्रि पर काँवरियों ( भोलों ) की ठहरने के लिये व रात्रि विश्राम के लिये भक्त सम्पूर्ण व्यवस्था करते है और श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर सम्पूर्ण मन्दिर को फूलों व लाईट से सजाया जाता है तथा अनेकों झाँकियाँ सजायी जाती है व सुन्दर रंगोली बनाते है । श्री कृष्ण जन्माष्टमी के बाद श्री कृष्ण छठी महोत्सव मनाते है । उस दिन सभी भक्त मिलकर विशाल भंडारे का अयोजन करते है ।
2. श्रंग ऋषि आश्रम Shrang Rishi Ashram –
शिकार खेलते हुए राजा परीक्षितगढ़ आ पहुँचे । प्यास से व्याकुल राजा ने तपस्या में लीन श्रमीक ऋषि से पानी मांगा , उत्तर न मिलने पर रूष्ट राजा ने उनके गले में मृत सर्प डाल दिया ।
पास में कौशिकी नदी में स्नान कर रहे उनके पुत्र श्रृंगी को जब ज्ञात हुआ तो उन्होंने बिना सोच – समझे तक्षक नाग द्वारा राजा को डसने का श्राप दे दिया । जो सत्य हुआ । 7 दिन बाद कड़ा पहरा लगाने के बाद भी राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के डसने से ही हुई ।
कौशकी नदी के अवशेष और श्रममी ऋर्षि और श्रृंग ऋषि की समाधि आज भी यहाँ स्थित है । वहीं प्राचीन गुफा के अवशेष जो गुफा हस्तिनापुर गन्धार को जोड़ती है , यहाँ मौजूद है ।
3. गान्धारी सरोवर Gandhari Sarovar –
कौरवों की माता गान्धारी ने इसको अति पवित्र मानकर इस सरोवर को पक्का बनवाकर अनेक तीर्थों का जल इसमें डलवाया और हस्तिनापुर से यहाँ तक गुफा का निर्माण कराया जिसके माध्यम से गान्धारी स्नान करने आती थी और पूजा किया करती थी ।
ऐसे भी प्रमाण है यहाँ गर्ग ऋषि का आश्रम था उस समय का शिवलिंग जिस पर जल चढ़ते – चढ़ते गड्ढे पड़ गये है । उसी के पास शेर और नन्दी की पत्थर की प्रतिमाएं जो स्वयं स्थान बदलती है । भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा से लाकर दो कदम्ब के वृक्ष यहाँ सीचे थे जो आज भी यहाँ की शोभा बढ़ाते है ।
पास में ही राम भक्त हनुमान जो दक्षिण मुखी प्रतिमा अपने आप में अद्भुत है जिसे आज तक कोई शीशे में बन्द नहीं कर सका । वहीं पत्थर पर स्वयं राम दरबार चित्रित होना भी आचर्य चकित करता है ।
4. नवल देह अमृत कूप Naval Deh Amrit Coup –
राजा परीक्षित की पत्नि मंगेतर अपने पिता का कोढ़ दूर करने के लिये जल लेने यही आई थी और राजा परीक्षित ने यही उनसे विवाह के लिये कहा और पूर्व में हुए अपने रिश्तों के बारे में बताया । नवल देह ने वापिस आने का वादा कर अपने पिता को इसी कुंए के जल से स्नान कराया था परन्तु पैर का अंगुठा अपने पैर से दबा दिया ताकि रोग पूरा ठीक न हो और दोबारा जल लेने के बहाने राजा परीक्षित के पास आई और अपना वादा पूरा किया । आज भी कोढ़ी दूर – दूर से यहाँ आकर रहते है और कोढ़ ठीक हो जाने पर चले जाते है ।
नवल देह का सांग आज भी देहाती लोक कथाओं में प्रसिद्ध है , जिसका मंचन देहाती मंचों पर आज भी किया जाता है ।
5. कात्यायनी देवी मन्दिर Katyayani Devi Temple –
नवदुर्गा के छठे रूप में कात्यायनी देवी का प्रसिद्ध शक्तिधाम यहाँ मौजूद है , यहाँ के अन्तिम राजा नैन सिंह को माँ कात्यायनी देवी ने सपने दर्शन दिये और बताया कि तुम्हारे राज्य पर शत्रु आक्रमण करने वाला है और अगर अपने राज्य की रक्षा करना चाहता है तो अपने महल की पूर्व दिशा से खुदाई कर मन्दिर निर्माण करें तो यह राज्य सदा सुरक्षित रहेगा ।
राजा ने अपने मुख्य पंडित को अपने स्वप्न के बारे में बताया तो मन्दिर निर्माण का राजा ने संकल्प किया । राजा के सैनिकों ने बताया कि राज्य को चारों ओर से शत्रुओं ने धेर लिया है और अगले दिन पता लगा की सारी सेना भाग खड़ी हुई । माता के प्रताप से यह संभव हुआ ।
माँ कात्यायनी कात्यायन ऋषि की पुत्री , जिनका छठे नवरात्रि में पूजन होता है । ये भगवान कृष्ण की अराध्य देवी है और ब्रज मण्डल की अधिश्ठात्री कहलाती है । अनुमान है कि भगवान श्री कृष्ण ने ही माँ कात्यायनी की विशेष पूजा यहाँ की होगी क्योंकि खुदाई में अति प्राचीन अवशेष प्राप्त हुआ था जो आज भी मन्दिर में है और भक्तों की आस्था का प्रतीक है । हर भक्त को मनोकामना पूर्ण होती है ।
वर्ष में दोनो नवरात्रों में सप्तमी मेलों का आयोजन , विशाल दुर्गा शोभायात्रा द्वारा माँ नगर में भ्रमण करती है । क्षेत्र के लोगों में इस मन्दिर के प्रति बड़ी आस्था है । सभी शुभ कार्यों को करने से पूर्व माँ कात्यायनी की अवश्य पूजा की जाती है ।
6. हरिहर उदासीन आश्रम Harihar Udaaseen Aashram –
यह मन्दिर राजा शान्तनु द्वारा निर्मित था और वे यहाँ पूजा करने आते थे । इस स्थान पर बना शिवलिंग अपने आप में बहुत महत्व रखता था क्योंकि यहाँ एक शिवलिंग में दूसरा शिवलिंग बना हुआ था । वर्तमान में यहा भव्य मन्दिर का निर्माण किया गया है । जो दिल्ली हरिहर उदासीन अखाड़े से सम्बन्धित है । नगर में यह अति दर्शनीय स्थल है ।
7. विश्वनाथ शिवालय Vishvanaath Shivaalay –
भगवान शिव का प्राचीन शिव मन्दिर जो नगर के बीच सुभाष चौक में वास्तुकला का अद्भुत नमूना है ।
8. महादेव मन्दिर Mahadev Temple –
यहाँ प्राचीन शिवलिंग और मन्दिर की मनोहर छठा अति दर्शनीय है । श्रावण फागुन मास में यही पर कावड़ मुख्य रूप से चढ़ाई जाती है ।
9. शैल शिवालय Shail Shivaalay –
शिव भक्तों को भगवान शिव का यहाँ प्राचीन आकर्षित करता है जो सौन्दर्य व शिवलिंग और प्राचीन पीपल वृक्ष वास्तुकला का अद्भुत नमूना है ।
10. आसेनाथ आश्रम ( कुटी ) Asenath Ashram (hut) –
सन्त आसेनाथ ने यहाँ तपस्या कर समाधिलीन होकर भक्ति में शक्ति का अहसास कराया था । इस स्थान पर कुटी के नाम से भी जाना जाता है । सन्तों का यहाँ आना जाना लगा रहता है । वर्ष में एक बार यहाँ विशाल आयोजन किया जाता है ।
11. महामायी नन्दाऋषि आश्रम जरत्करू ऋषि आश्राम Mahamayi Nanda Rishi Ashram, Jaratkaru Rishi Ashram –
इसी स्थान पर जन्मेजय ने सर्प यज्ञ किया । इनके पुत्र आस्तिक ऋषि ने सर्प जाति की रक्षा के लिये जन्मेय से आग्रह किया था । जन्मेजय ने हानि पहुँचाने वाले में सर्पों का ही यज्ञ में दोहन किया था । आज भी नगर में सर्प निकलते रहते है लेकिन आज तक किसी भी सर्प से हानि नहीं हुई । महामायी नांगवंश की माता थी जिन्हें मंशादेवी भी कहते है ।
12. सती स्थल Sati Sthal –
रानी रूपकौर यहाँ सती हुई । यहाँ पर एक मन्दिर का निर्माण कराया गया । रानी रूपकौर जैतसिंह की पुत्रवधु एवं नत्था सिंह की पत्नी थी जो अत्यन्त धार्मिक थी और अपने पति के साथ होली के दिन यहीं पर सती हुई थी । इसी कारण इस स्थान को होलीवाला भी कहा जाता है ।
13. शिवशक्ति मन्दिर Shivshakti Mandir –
नव निर्माण के रूप में अति सुन्दर शिवालय अत्यन्त दर्शनीय है जो नगर के पश्चिम में स्थित है ।
14. महाकालेश्वर मन्दिर Mahakaleshwar Temple –
पर्यटन विकास की दृष्टि से रजवाहे के पास इस शिवालय का निर्माण जाती है । यह स्थान विभाण्डक ऋषि आश्रम के परिक्षेत्र में आता है ।
15. शहीद स्मारक Shaheed Smaarak –
देश के अमर शहीदों की याद में नगर पंचायत द्वारा इस निर्माण कराया गया है । वही भारत माता के मन्दिर का निर्माण भी जारी है तथा नगर के सभी प्राचीन कुओं का सौन्दर्यकरण किया जा चुका है , जिससे हमारी ऐतिहासिक धरोहर सुरक्षित रह सके ।
16. ऋषि मुनियों की तपोभूमि Tapobhoomi of sages –
यहाँ पर गर्ग ऋषि , अगस्त ऋषि , विश्वामित्र , च्यवन ऋषि , कश्यप ऋषि , कनाद ऋषि , कात्यायन ऋषि आदि के आश्रम या उनकी शाखाएँ भी यहाँ होने के प्रमाण मिलते है ।
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